कई जगह शापित होती है तो कई जगह Bhut pret Atmaye द्वारा बाधित होती है. कुछ भुतिया घर शापित होते है तो कई पूरा महल ही भूतिया महल बन जाता है.
आज की कहानी थोड़ी कुछ एसी ही भुत प्रेत आत्माओ के बारे में सच्ची घटना है जो लोगो को अचंबित ही नहीं डराती भी है.

लोगो के मन मे डर का घर बन गया है वह सोचते रहते है कौन बनता है भूत, कैसे रहें भूतों से सुरक्षित, भूत प्रेत, बुरी आत्मा के डर से कैसे पाएं छुटकारा, इन भूत प्रेतों के रहस्य क्या है, और क्या सच मे लोग क्यों लोग भूत प्रेत की चपेट में आ जाते हैं आदि.
आपके लिए एक Reference देना जायेंगे जो भुत-प्रेत विकिपीडिया पर भी दिखाई देगा. कई सारे चित्र-विचित्र घटनाये लोग बताते है कौनसे सही है और कौनसे नहीं इतिहास उठाकर देखे तभी पता चलेगा.
आज एसी ही खानुवा के bhoot pret aatma की कहानी लिख रहे है जो काफी सालो पहले दो राजाओ के सैनिको के भूतो के बारे में है.
आर्टिकल के मुख्य विषय.
खानुआ के Bhut pret Aatmaye बने सैनिक.
शायद सन १९३६ के आसपास की बात है. मार्च का कोई उमस भरा दिन था. हम दारे मस्जिद की और से आ रहे थे तभी हमने लोहे से लोहा टकराने और बहुत से लोगो के आपस में लढने की आवाजे सुनी.
बेइंतहा शोर था. मानो कहर टूट पड़ा हो, पर आसपास कोई दिखाई नहीं दे रहा था. हम काफी देर तक हक्के-बक्के रह गए. फिर हम डरकर गाँव में भाग गए.
राजस्थान के रूपबास क्षेत्र मे खानुआ गाँव के ११४ वर्षीय बुजुर्ग सरदार अली ने एक पत्रकार को साक्षात्कार में बताया था.
खानुआ गाँव करीब ११०० वर्ष पूर्व खान मोहम्मद पठान द्वारा बसाया गया था. आज यह गाँव खंडहरों तथा लोक-कथाओ का गाँव माना जाता है, जहा पर्यटक भी आते है.
खानुवा के Bhut Pret Aatmaye बन गए सैनिको की चुनोती.
खानुआ के विशाल मैदान पर ही राजपूतो ने मुघलो को चुनोती दी थी. सरदार अली के अनुसार उनके पुरखो में कईयो ने रातो में मैदानी क्षेत्र से युद्ध की आवाजे सुनी थी.

उनके भी पुरखो के समय भुतहा सेनाए लडती दिखाई देती थी. जब सरदार अली बहुत छोटे थे, उनके बड़े-बूढ़े बताते थे की गांव की पश्चिमी पहाड़ी के पीछे मैदान मे युद्ध मे मारे गए फौजी भटकते है भुत प्रेत आत्माए बनकर.
यह सारी bhut pret aatmaye हजारो मुघल और राजपूत सैनिको की मानी जाती है जिन्हें लोग खानुआ के भुतहा सैनिक मानते है.
इतिहास गवाह है, शनिवार १६ मार्च, सन १५२७ इ.को इसी इलाके में शहंशाह जहीरुद्दीन बाबर और राजपूत सम्राट राणा सांगा की सेनाओ के बिच राण-संग्राम (लढाई) हुवा था.
इससे पूर्व २१ अप्रैल सन १५२६ ई.को पानीपत की लढाई मे बाबर ने इब्राहीम लोदी की फौजों को मसल डाला था.
राजपूत और बाबर के बिच युद्ध.
खानुआ के युद्ध में बाबर की व्यूह-रचना गांव की पश्चिमी पहाड़ी के पीछे के क्षेत्र में ही थी. इसी इलाके मे गहरी खाईया खुदवाई गयी थी.
इस खाइयो को खुदवाने के समय अचानक पीछे से हमला न हो पाए यह था. सामने की और बैल गाड़िया एक-दुसरे से बांधकर, उनके पीछे तोफे रखी गयी थी.
और फिर १६ मार्च सुबह नौ बजे राणा सांगा की सेना ने पहल करके युद्ध आरंभ कर दिया. करीब दस घंटे बाद, तोफो की मार से राणा की सेना क्षीण हो गयी. इसी युद्ध के घावों की वजह से ही सम्राराट राणा सांगा ४६ वर्ष की आयु में दिवंगत हुए थे.
खानुओ की ग्रामीणों तथा राजस्थान के आम नागरिको का मानना है की पराजित और क्षुब्ध राजपूत सैनिक आज भी अपने दुश्मनों को bhut pret aatmaye बनकर खोजते है.
राजस्थान मे “शहीदे काफिले” के भटकने की कई कथाये कहानिया भी प्रचलित है, जो मशाले हाथ में लेकर न जाने क्या खोजा करता है, खानुओ के मनहूस रणक्षेत्र में bhut pret aatmaye बनकर.
- भुत आत्मा सेनाये जो आज भी जिन्दा है.
भुत प्रेत आत्माओ को लेकर कथाये.
Bhut Pret Aatmaye क्यों भटक रही है खानुवा के क्षेत्र में. यह सच्चाई बताने को लेकर लोगो के मन में आज भी डर की भावना पैदा हो जाती है की कही वह सच में न आ जाये. भूत प्रेत सच्ची घटनाएं रहस्य आज भी दुनिया से परे है.
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