प्रिय पाठक, स्वागत है आपका आज की Bahurupiya Rajguru और Tenaliram की हिंदी कहानी पर. तेनालीराम के किस्से और होशियारी की वजह से राजगुरु बेहद चिंतित था. हर दुसरे दिन उसे तेनालीराम की वजह से झुकता हुवा देखना पढ़ रहा था. रोज दरबार मे हसने वाले का मुख्य केंद्रबिंदु बनता जा रहा था राजगुरु.Bahurupiya Rajguru Aur Tenaliraam

उसने सोचा की यह दृष्ट तेनालीराम बहुत बार महाराज के मृत्युदंड से भी बच चूका है. इन सबसे छुटकारा पाने का एकही रास्ता है मै खुद इसे मारूंगा. राजगुरु ने मन ही मन एक योजना बनाई.

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राजगुरु कुछ दिन बाद तीर्थयात्रा के कारण नगर छोड़कर गया और एक नामांकित Bahurupiya के पास जाकर ट्रेनिंग लेने लगा. वह बहुरूपिये के सभी खेल दिखाने मे पारंगत हो गया और बहुरूपिये के भेस मे नगर मे आया और दरबार मे पंहुचा.

राजगुरु ने कहा के वह अलग-अलग प्रकार के खेल दिखा सकता है, राजा ने भी कहा ‘तुम्हारा सबसे सुन्दर खेल कौनसा है”?

मै बाघ का खेल बेहद अच्छा कर सकता हु महाराज, परन्तु इसमें खतरा है, कोई भी जख्मी हो सकता है या फिर मर भी सकता है. इस खेल को दिखाने के लिए आपको मुझे एक खून माफ़ करना होगा.

महाराज ने उसकी यह शर्त मंजूर कर ली.

‘एक शर्त और है महाराज, मेरे खेल को दिखाते समय तेनालीराम भी दरबार मे अवश्य उपस्थित होना चाहिए बहुरूपी बोला. ठीक है यह भी शर्त हमें मंजूर है महाराज बोले.

यह शर्त सुनकर तेनालीराम का भी माथा फड़का और सोचा की यह कौन दुश्मन है हमारा जो हमें खेल दिखाने के नाम पर मारना चाहता है. खेल शुरू हुवा, Bahurupiya बहुरूपी की कला देखकर सभी दरबार के लोग दंग हो गए थे.Bahurupiya Aur Tenaliram Ki Kisso Ki Kahani

थोड़ी देर इधर-उधर कूदते-उछलने के बाद बहुरूपी ने अचानक तेनालीराम के पास पंहुचा और उनपर हमला किया. तेनालीराम पर हुवा यह आक्रमण देखकर महाराज घबरा गए, तेनालीराम को कुछ हुवा तो? तेनालीराम ने भी धिरे से अपने नाखुनो से उसपर वार किया, चिल्लाते हुए Bahurupiya वही जमीन पर गिर गया.

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तेनालीराम को बहुरूपिये की शर्त याद आयी वह समज चूका था की यह एक चाल है हमें ख़त्म करने की. महाराज ने तेनालीराम को पास बुलाया और पूछा ‘तुम ठीक हो न? तुम्हे कही लगी तो नहीं?

तेनालीराम भी बेहद होशियार था उसने महाराज को कवच दिखाया और कहा महाराज यह देखिये कवच पहना है मैंने मुझे एक खरोच भी नही लगी है. तेनालीराम ने अपनी सुरक्षा के विषय मे Bahurupiya ने रखी शर्त कई. राजाने उसे सजा देने के बजाये उसकी बात सुनी इसीलिए हमसे बदला लेने के लिए बहुरूपिये ने यह खेल दिखाया है.

फिर तेनालीराम ने बहुरूपिये से कहा ‘महाराज आपकी कला से बेहद प्रसन्न है उनकी इच्छा है की कल आप सती का खेल दिखाए, अगर आप इसमें सफल हुए तो महाराज की तरफ से पुरस्कार स्वरुप आपको दस हजार स्वर्ण मुद्राए प्रधान करेंगे.

Bahurupiya के भेस मे गुस्से से तप रहे राजगुरु मन ही मन बोला, अब तो हम और भी फस गए लेकिन अब खेल दिखाने के सिवा भी कोई और रास्ता नही. तेनालीराम ने कुंड बनाकर उसमे बेहद सारी लकडिया जलाई. सुरक्षा के लिए वैध्य को भी बुलाया.

Bahurupiya सती का भेस धारण करके दरबार पोहोचा. उसका वह भेस इतना सुन्दर था की कोई कह भी नही सकता की बहुरुपिया कोई महिला नहीं है. आखिर बहुरूपी बने राजगुरु को जलते-धधकते कुंड मे बैठना ही पड़ा.कुछ ही क्षण मे जलती शोला की वजह से उसका शरीर लाल होने लगा, तपने लगा, जलने लगा.

अब Bahurupiya चिल्लाने लगा, तेनालीराम से यह देखा नही गया और उसे राजगुरु जो बहुरूपिये के भेस मे था उसपर दया आ गयी. उसने राजगुरु को जलते कुंड से बाहर निकाला.

बहुरुपिया अपना असली रूप दिखाकर तेनालीराम से माफ़ी मांगने लगा. तेनालीराम ने भी उसे क्षमा कर दिया और उपचार के लिए वैध्य के हवाले कर दिया.

कुछ ही दिनों मे राजगुरु ठीक हो गया. उसने तेनालीराम को कहा ‘आज से तुम्हारे लिए मेरे मन मे कभी शत्रुता नही रखूँगा’, तुम्हारे उदार मन ने मुझ पर जो दया दिखायी है उसने मेरा मन जित लिया है. आजसे हम दोनों अच्छे मित्र रहेंगे.

तेनालीराम ने राजगुरु को अपनी छाती से लगा लिया. उसके बाद कभी भी तेनालीराम और राजगुरु मे कभी भी शत्रुता नही आयी.

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इसप्रकार से तेनालीराम के किस्से की Bahurupiya बने Rajuguru और तेनालीराम की यह हिंदी कहांनी ख़त्म हुयी जल्द ही अगली कहानी पब्लिश करेंगे. अगर आपको यह हिंदी की कहानी पसंद आयी है तो सोशल मीडिया मे अपने मित्रो के साथ जरुर शेयर करे. हर गुदगुदाने वाली, भूत की कहानी, डर की कहानी, मजेदार कहानी, सुपर हिंदी कहानिया आपके ईमेल इनबॉक्स पर पाने के लिए ब्लॉग को जरुर सब्सक्राइब करे.

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