भुत नाम सुनकर ही कुछ लोगो को Horror Stories की याद आ जाती है | आज की हिंदी कहानी भी सच्ची भूत प्रेत की कहानी है जो मरी हुयी सेनाये की जीवित होने की मौजूदगी बया करती है |
कब, कहा और कैसे कोई भयानक घटना घट जाए कोई नहीं जानता | भुत किसीके अनुयायी नहीं होते, कब किस शापित जगह वह अपनी मौजूदगी ले आये कोई नहीं जानता |
भुत बनी सेनाये |
भुत बनीसेनाएं ब्रिटेन की राजशाही विरुद्ध क्रामवेल ने २३ अक्टूबर १६४२ को युद्ध की घोषणा कर दी| शाम ढलने पर शाही फौजे और बअगियो के मध्य जो घमासान युद्ध हुवा, जिसके बदौलत वारविकशायर तथा नर्ठेम्पतान्शायर के बिच एज हिल के युद्ध क्षेत्र में हजारो कटी फटी लंशे पड़ी थी | असंख्य घायल कराह रहे थे |
दोस्त दुश्मन को पहचान पाना असंभव था| दोनों पक्षों ने किसी अन्य जगह लड़ने का निश्चय करके ,जंग बंद कर दी | मगर तब तक प्रकृति के ऊपर इस नृशंस युद्ध की ऐसी छाप छोड़ चुकी थी की आने वाले कई वर्षो तक एज हिल भुतहा सेनाओ के बिच जंग का आतंक तथा उत्सुकता का केंद्र बना रहा |
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जंग के पश्चात् २४ दिसंबर को इस क्षेत्र में कुच्छ चरवाहों ने अधि रात को कुच्छ अदृश्य भुतहा सेनाओ के मध्य मार काट और अस्त्र शास्त्रों की आवाजो सुनी | चरवाहे आशचर्य चकित थे | तभी हवा से सेनाये निकल पड़ी| घमासान जंग छिड़ गयी | मगर कोई चरवाहा किसी सैनिक के अस्त्र शास्त्र से घायल नहीं हुवा | अगले रोज २५ दिसम्बर को 3 बजे सुबह यह सब अपने आप बंद हुवा |
भयभीत चरवाहे करिबी गाँव किंतन गऐ| वहा लोगो को सारा किस्सा कह सुनाया | गाव के प्रतिष्टित व्यक्ति वूड तथा मार्शल सैकंडो लोंगो के साथ एज हिल पर गए | वहा उसी रात किंतन और निकटवर्ती गवोंके हज़ारो की तादाद में लोंगो ने बीती रात जंग अपनी आँखों से देंखी | इस घटना से डरे ग्रामीणों ने भुत आत्मा की शांति हेतु प्रार्थनाये भी की |
एक हफ्ते तक तो सब ठीक रहा ,मगर फर भूतो की जंग शुरू हो गयी | सम्राट चार्ल्स ने इस घटना की जाँच पड़ताल क लिए छह सद्सियी मंडल को एज हिल भेजा | उनमे तिन सेनाअध्यक्ष भी थे | सभी ने खुली आँन्खो से भुतहा युद्ध होते देखा | उन्होंने कुच्छ सैनिको तथा युद्ध का नेतृत्व कर रहे राजकुमार रुपर्ट को पहचाना |
इसी युद्ध के पश्चात् शाही फौजे के साथ क्रामवेल की फौज ने तिन साल बाद एक जंग नर्ठेम्प्तान्शायर के नेसबी युद्धक्षेत्र में लड़ी | उसमे भी असंख्य सैनिक मारे गए |यह जंग भी लोंगो ने नेसबी के आकाश में होती आकाश में 100 तक देंखी | लेकिन समय बितने पर दृश्य धुंधले होते गए |आवाजे ही रह गयी| फिर आवाजे भी लुप्त हो गयी|
२ जुलै सन १६४४ ई में ४००० शाही सैनिको को मर्स्तान मुर यार्कशायर में हुए युद्ध म क़त्ल कर दिया गया था |उनकी मृतात्माये अपने सैनिक लिबास में अस्त्र शास्त्र धारण किये घोंड़ो पर बैठी इस क्षेत्र में इधर से उधर दौड़ती सन १९३२ ई तक देंखी गयी | सम्राट चार्ल्स प्रथम को बागियों ने पराजित करने के पश्चात् उनका सीर काट डाला था| उ
उनका भुत विंडसर महल में लाइब्रेरी और चेशायर के मर्पल हॉल ,दोनों जगह दृष्टीगोचर होता है | महल में यह भूत पूरा दिखता है जबकि मर्पल हॉल में बिना सीर के | जब सम्राट चार्ल्स द्वितीय ने वापस सत्ता हासिल की ,तो बागी क्रामवेल को उसके दोनों साथियों जॉन ब्राद्दशा व् जनरल इर्तन सहित क़त्ल डाला गया था |
लेकिन उनके भुत आज लन्दन में रेड लायन स्क्वायर में चहल कदमी करते दृष्टिगोचर होते है |ये भुत सन १६६० ईसे देखे जा रहे है| क्रामवेल को सन १८३२ ई में अपने सामने देखकर ही वैलिंग्तों के दृके (duke wellington)ने ब्रिटेन में शासकीय प्रणाली में सुधर के प्रस्ताव का समर्थन किया था | क्रामवेल के भुत ने उसे एसा करने को कहा था |
सन १८६१ ई से सन १८६५ ई के दौरान हुए , अमेरिकी गृह युद्ध की सर्वाधिक विभित्सा मर काट शिलोह में हुयी थी ,जहा २० हजार से अधिक नागरिक मारे गए थे | तब से उस इलाके में 50 वर्ष तक भुत मार काट के नज़ारे दृष्टी गोचर होते है| रोमन फौजे ने जब इंग्लैंड पे आक्रमण किया था तो हजारो सैनिको को उन्होंने काट डाला था|
विल्टशायर घाटी में वूद्मेंतों के पास आज भी रातो में दौड़ते हुए घोड़ो और युद्द्ध करते हुए सैनिको का शोर सुना जाता है| इस संभंद में करीब २०० वर्षो पूर्व तक तो भुतह आक्रामक और पराजित दोनों ही देखते थे |मरे सैनिको के शवो तथा सीर काटे घोंड़ो की तापो से डर कर इस घाटी से ज्यादातर लोग भाग ही गए थे |
प्रथम विश्वयुद्ध के दौरान जर्मनी तथा मित्र राष्ट्रों की सेनाओ के जवानो को बार भुतहा सैनिको द्वारा सहायता के अनुभव हुए | विशेष तोर से २६ अगस्त सन १९१४ ई के युद्ध में जर्मन सैनिको का मनोबल गिराने की वजह ही भुत सैनिको की रणक्षेत्र के मध्य में अचानक प्रकट हो जाना बताया जाता है| इस दौरान सन १४१५ ई में हुयी एजिंकोर्ट की जंग की तीरंदाज एकाएक जर्मन सैनिको पर टूट पड़े थे |
यद्दपि जर्मनी का कोई सैनिक उनसे घायल नहीं हुवा था ,लेकिन इससे पूर्व की जर्मन सैनिक संभालते ,ब्रिटिश सेनाओ के घोड़े तक भुतह सैनिको को बिदक गए थे | इसी प्रकार ४ अगस्त सन १९५१ ई को दो ब्रिटिश औरोतो ने फ्रांस के दयापी क्षेत्र में घुमने के दौरान एक दिन सूर्योदय से पूर्व ही गोलिया चलने की आवाजे सुनी| उन्हें मालूम न था की यह सब क्या है |
उन दोनों औरोतो ने इस घट्ना का सिलसिलेवार ब्युरा तिन घंटे नोट किया | बाद में विशेषदन्य ने बताया की दोनों महिलाओ ने 19 अगस्त ,सन १९४२ ई को ब्रिटिश –कनाडियन सेनाओ द्वारा ६००० सैनिको की सहायता से नर्मैन्दी बंदरगाह पर किये गए उस आक्रमण की भुतह प्रतिध्वनिया सुनी थी ,जिसमे जर्मन फौजे ने उन सभी सैनिको को गाजर मुली की भांति काट डाला था |
किन्तु विशेषदन्य चकित है | आखिर परमाणु बम्ब से तबाह जापान के दो नगरो –हिरोशिमा और नागासाकी में उस मनहूस दिन की भुतहां पुनार्वृत्ति क्यों नहीं होती ,जिसमे लाखो मासूम दिन की भुतहा पुनार्वृत्ति क्यों नहीं होती, जिसमे लांखो मासूम मृत्यु का ग्रास बन गए थे|
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इस प्रकार से यह सारी भुत बनी सेनाये आज भी लढती, मारती और काटती दिखाई देती है| आशा करते है आपको हिंदी डरावनी कहानिया की हर भुत हॉरर स्टोरी हिंदी पसंद आ रही होगी| आप भी हमारे साथ शामिल हो सकते है अपने आसपास घटी हुयी भूत प्रेत की भयानक घटना की जानकारी देकर|
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