प्रिय पाठक, स्वागत है आपका हिंदी कथाये सीरिज की गुरुसेवा से समर्पित आज की नयी कथा वेदधर्म रुषी और महान शिष्य दीपक की अद्भूत हिंदी कथा पर. यह कहानी है जिसे पढ़कर आपको अवश्य प्रसन्नता होगी.
क्या आप जानते है की हम यशोमंदिर किस के दमपर बांध सकते है? नहीं ना? तो सुनिए, यह एक मंदिर गुरु के होने पर बांध सकते है.लेकिन यह मंदिर बनने के लिए हमारी गुरुपर निष्ठा और भक्ति होनी चाहिए.
एसेही एक महान शिष्य की कहानी हम आपके लिए पब्लिश कर रहे है. उस शिष्य का नाम दीपक था. दिपक ने अपने अथक कष्टों के साथ गुरुसेवा करके अनमोल ग्यान का खजाना पाया था. उसने यह कैसे किया आपको जरुर जानना चाहिए.
आर्टिकल के मुख्य विषय.
गुरुसेवा की हिंदी कहानी.
गोदावरी नदी के पास घने जंगल में अनेको रुषीमुनियों ने शांत जगह होने की वजह से अपनी तपोभूमी के तौर पर चुना था. इसी तपोभूमी में वेदधर्म नाम के एक महान रुषी रहते थे. उनके बहुत सारे शिष्य थे जिनका समूह भी काफी बढ़ा था.
उन शिष्यों में दीपक नाम का एक शिष्य था. वह वेदधर्म रुषी का मनपसंद शिष्य था. हर शिष्य की परीक्षा जब गुरु के मन में आये तब वह लेते है.
उसी के अनुसार वेदधर्म रुषी ने अपने शिष्यों से कहा की, ‘मैंने मेरे जीवन में अनेको पाप किये; लेकिन उनमेसे बहुतसी मेरे ताप के कारन नष्ट हो गयी. अब जितने बचे है वह मै काशी में जाकर उसका प्रायश्चित करना चाहता हु.
उन पापो की वजह से काशी में जाने पर मुझे गंभीर रोग होंगे. उस परिस्थिती में मेरी सेवा करने के लिए कौन तयार है? उसपर सभी शिष्यों ने अपने-अपने पैर पीछे खेच लिए.
लेकिन दीपक आगे आया, उसने गुरुसेवा करने के लिए अपनी सेवा देने में समर्थता दिखाई. एसा देखकर सभी रुषिमुनियो को आश्चर्य हुवा.
काशी में वेदधर्म रुषी और दीपक दोनों आये. वहा आनेपर वेदधर्म रुषी बुरी तरह से रोगों से भर गए. आदमी को जब कोई दर्दनाक दर्द होता है तो वह बहुत चिड जाता है, उसी के साथ यह बीमारी इतनी भयंकर थी देखते ही डर जाये. इस बीमारी की वजह से वह बहुत चिड गए, दीपक पूरी रात-रात भर उनकी सेवा में लग गया.
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गुरु की सेवा करना ही अंतिम लक्ष.
आखो के सामने एक ही लक्ष्य था गुरी की सेवा, वह करने में दीपक को बहुत ख़ुशी होती थी जैसे वह आनंद्सागर में तहर रहा हो एसा लगता था. वही सेवा करने में उसे बहुत परेशानी का सामना करना पढ़ता था वही वेदधर्म उसकी परीक्षा भी ले रहे थे.
उन्होंने दीपक को बहुत परेशान किया लेकिन दीपक घबराया नहीं. उसकी गुरुसेवा उसने शुरू रखी.
काशी में होने पर भी दीपक ने देव दर्शन किये नहीं. किसी की सेवा करना यह बहुत कठिन काम है यह बया करके नहीं बताया जा सकता. तो फिर दीपक जैसे महान शिष्य के बारे में बया करना कैसे आसान होगा.
उसकी भक्ति देखकर भगवान शंकर प्रसन्न हुए. लेकिन अपने गुरु की आग्या न होनेपर दीपक ने कोई वरदान भी नहीं मांगा.
आखिर में भगवान शंकर विष्णु के पास गए और उनके पास दीपक की प्रशंसा की. विष्णु जी को भगवान शंकर ने कहने से भी ज्यादा भक्ति दिखाई दी. वह बहुत खुश हुए और वह भी दीपक की गुरुसेवा देखकर प्रसन्न हुए.
उन्होंने कहा मांगो दीपक वरदान मांगो. तुम्हे कुछ तो मांगना ही होगा.
अंतर्मन की बात.
तभी दीपक ने भगवान विष्णु से कहा ठीक है आप मुझे वरदान ही देना चाहते है एसा वरदान दीजिये की मेरा पूरा ध्यान गुरुसेवा में ही लग जाये उनकी सेवा के सिवाय मेरा मन कही भी ना विचलित हो पाए तथा गुरु के अंतर्मन की बात भी मुझे पता चल जाये.
भगवान विष्णु इस बात से बहुत प्रसन्न हुए और दीपक को वरदान दिया और कहा की गुरु याने बहुत बढ़ा ग्यान का सागर है. तुमने उसमे से सिर्फ दो बूंद भी पीली न तब भी तुम्हे पूरा ग्यान प्राप्त हो जायेगा.
यह सुनकर उस क्षण वेदधर्म रुषी को दिव्य शरीर मिला. दीपक उस घडी में ली गयी परीक्षा में पास हुवा.
वेदधर्म बहुत खुश हुए. उन्होंने भी दीपक को वरदान दिया और कहा की तुम काशी में ही रहो. तुम्हारी वाणी सभी दिशाओ के किनारों पर भरी हुयी होंगी. विश्वेश्वर की सेवा पाने के लिए तुम पात्र होंगे.
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गुरुसेवा इस हिंदी की कहानी की सिख.
अगर आप गुरु की सेवा सच्चे मन से गुरुसेवा करेंगे तो आपको भगवान भी पसंद करेंगे तथा गुरुद्वारा सबसे बढ़ा वरदान स्वरुप महान ग्यान का बन्डार भी प्राप्त होगा.
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