प्रिय पाठक, स्वागत है आपका हिंदी कहानिया संग्रह की एक डायन, मिश्रा और सबजीत की डरावनी कहानी पर. एक छोटेसे गांव में दो बुजुर्ग रहते थे. उनमे एक का नाम मिश्रा था तो दुसरे का नाम सबजीत था मिश्रा और सबजीत दोनों ही लंगोटिया यार थे. वह एक प्लेट में खाना खाते थे इतना प्यार उन दोनों मित्रो में था. उन दोनों को गांजा खीचने की आदत थी. गांव में तीन बार पेट भर के खाना खाना खा लेना और रातदीन चिलम पीना एसा उनका दिनक्रम था.
उनके इस प्रकार के व्यवहार से उनके घर वाले परेशान रहते थे. आखिर में मिश्रा और सबजीत दोनों के घर वाले इतना परेशान हो गए की उन्होंने दोनों को घर से बाहर करने का सोच लिया. दोनों दोस्त अपने अपने घर खाना खाने गए. घर में पैर रखे ना रखे तभी उन दोनों को वार्निग दे दी की ख़बरदार अगर आजसे घर में पाव रखा था. आजसे तुम दोनों को खाना नहीं मिलेगा तुम्हे जहा खाना मिले वहा जाके खाओ. चिलम से तर्र हुए दोनों गुस्से से अपने-अपने घर से बाहर निकले और एक बड़े गाव के रास्ते पर सोच-विचार करने लगे.
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अब क्या करे? कहा जायेंगे? क्या खायेंगे? आखिर में दोनों ने गाँव को छोड़ना पक्का किया.रातभर जैसे तैसे उसी चौराहे पर सो गए. सुबह सुबह उठके वह दोनों निकल पढ़े जो गाव मिलता वहा रुक जाते. वही पर कुछ मांग लेते और वही खाना जो मिला खा लेते थे. लेकिन इतना होने बावजूद भी मिश्रा और सबजीत गांजा और चिलम पीना बंद नहीं किया. कुछ दिनों बाद एक गाव से दुसरे गाव में जाने लगे.
आदमियों का नामोनिशान नहीं और पंछियों का ठिकाना नहीं ऐसे वीरान रास्ते से दोनों आगे जा रहे थे. तभी मिश्रा को प्यास लगी. पानी के लिए उसका गला सुकने लगा और एक पेड़ के नीछे धाड़ करके जमीन पर गिर गया. सबजीत ने उसे उठाने की कोशिश करते हुए पानी कहा मिलेगा यह सोचने लगा. पेड़ के निचे होने के कारण थोडीसी शांती मिश्रा को लगी तो वह होश में आया.
सबजीत ने पानी के बारे में सोचते-सोचते पीछे देखा तो उसे बगीचे की जैसे छोटीसी हरी-भरी घास दिखाई दी. उसने सोचा की अगर यहा हरी घास है तो पानी भी जरुर होगा इंसानी बस्ती भी जरुर होगी. सबजीत ने मिश्रा को धीरे से अपने कंधे पर उठाया और उस हरे घास की तरफ जाने लगा. जब थोडा आगे गया तो सबजीत ने देखा की वह हरी घास नहीं आम के पेड़ की खेती थी. खट्टे-मीठे आमो से भरे उस आम की खेती काफी सुंदर लग रही थी.
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आम के पेड़ के खेती के बिच में एक गोल आकार का कुंवा था. उसपर पानी निकालने के लिए बड़ी रस्सी भी लगी हुयी थी. यह देखकर सबजीत को काफी ख़ुशी हुयी. मिश्रा को कंधे से उतारकर जल्दी से उसने कुए से पानी निकाला और पानी की प्यास की वजह से बुरी तरह से मिश्र के सूखे गले को शांती देने के लिए पानी पिलाया. खुद भी पेट भर के पानी पिया और मिश्रा के पास में ही बैठ गया.
बैठे-बैठे ही दोनों आम की खेती को देखने लगे. वह हरे-भरे पेड़ो को देखकर दोनों मित्र बहुतही खुश हुए और अच्छे-अच्छे आम तोड़कर खाए एसा वह सोचने लगे. लेकिन जब उन्होंने कुए से कुछ दूर पीछे देखा तो उन्हें वहापर एक बड़ा महल दिखाई दिया वह महल काफी बड़ा था. इतने बड़े महल में जाने पर खाना खाने को जरुर मिलेगा यह सोचकर दोनों ही उस आलीशान महल की और चल पढ़े.
महल बहुत ही सुंदर था. अंदर बहुत बड़ा दीवानखाना था. दीवानखाने के चारो दिशाओ में बड़े बड़े जानवरों के सर और सिंग लगे हुए थे. दीवानखाने के बाजु में बड़ा सा रसोईघर जैसा लग रहा था. जैसे ही वहा दोनों पहुचे सच वह रसोईघर ही था, वहा पर हर प्रकार के फल चांदी के प्लेट्स में रखे हुए थे. वहीपर रसोई के अच्छे-अच्छे पकवान भी थे. वाव यह देखकर तो मिश्रा और सबजीत के मुह में पानी आ गया. जल्दी से देर किये बिना उन्होंने पेट भरके फलो के साथ-साथ पकवान भी खाए.
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खाना खाने के बाद दोनोने पुरे महल में फिर से एक चक्कर लगाया. महल में सोने-चांदी की अलंकार और आलीशान महल देखकर वह बहुत ही खुश हुए पल भर भी उन्होंने यह नहीं सोचा की इतने बड़े महल में इतनी सारी सम्पत्ती होने पर भी कोई इन्सान क्यों नहीं है. उन दोनों ने पक्का कर लिया की अब यहा से कही नहीं जायेंगे हमारा पक्का ठिकाना अब यही महल होगा.
मिश्रा और सबजीत दोनों उसी महल में रहने भी लगे. कमसे कम एक सप्ताह उन दोनों ने बड़े ही मजे से और आराम से उस महल में निकाला. हर प्रकार के फल और पकवान उन्होंने महल में खाए. नए नए कपडे पहनने को मिले, कई सारे सोने चांदी के अलंकार पहनने को मिले. रोज का दिनक्रम दोनों बुजुर्गो का फिक्स हो चूका था की इसी तरह से रोज चैन करेंगे.
वह महल एक डायन का था. वह दिनभर गुप्त रूप से महल में वास करती थी. महल के पास से जानेवाले हर इन्सान को वह भक्ष याने भोजन कर जाती थी. इस तरह रोज का दिनक्रम उस डायन का भी होता था. यह बात आसपास के सभी गावो को पता हो चुकी थी इसीलिए वहा से कोई भी नहीं गुजरता था.
फिर भी मिश्रा और सबजीत जैसे दो बुजुर्ग जैसे इन्सान जिन्हें डायन के बारे में पता नहीं होता वह उसके भोजन का रूप जरुर बन जाते थे.
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एक दिन क्या हुआ डायन को कोई शिकार मिला ही नहीं. पूरा दिन ढल चूका था लेकिन कोई शिकार नहीं मिला. उस डायन ने सोचा क्यों अब शिकार की राह देखे एसे भी महल में दो दिन का शिकार तो मौजूद है. उन दोनों में से एक आज खा लुंगी और दूसरा कल खाउंगी.
रात हो चुकी थी, मिश्रा और सबजीत रोज की तरह खाना बिना खाके महल घूम घाम के सब कुछ अपनी मर्जी से इंजॉय करके गद्दे पर सो गए. आलसी जीवन जगने वाले दोनों बुजुर्ग इस तरह से सोये पढ़े थे मानो कुंभकरण भी उनके आगे कम हो जाये.
उसी वक़्त वह डायन आधी रात के अंधेरे में महल में आयी और अपने विक्राल शरीर के आकार को बढाया और उसके सामने तिनके से लगने वाले मिश्रा को आराम से एक हात में उठाया. लेकिन मिश्रा को उठाते ही सबजीत जाग गया उसने उठकर देखा तो वह बहुतही डर गया. उसके सामने अक्राल विक्राल डायन थी. सबजीत को लगा जोर जोर से चिल्लाये लेकिन उसकी आवाज में डर की वजह से निकल नहीं रही थी.
डर के मारे सबजीत देखता ही रह गया, उस डायन ने किसी कीड़े के भाती मसल-मसलकर आनंद से मिश्रा को खाने में चट कर लिया. सबजीत ने मन ही मन में सोचा अगर मै एक मिनट भी यहा रुका तो मिश्रा की तरह यह डायन मुझे भी चंद मिनटों में खा जाएगी. सबजीत भागने लगा लेकिन डायन ने उसे भी उठा लिया और ककड़ी की तरह खा लिया.
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सिख- आलसी जीवन जगने वाले इन्सान जीवन में कभी सफल नहीं हो पाते. एक दिन मिश्रा और सबजीत इन दोनों जैसी हालत कभी किसी की ना हो इसी लिए हमेशा सामने कोई लक्ष रखो जिसे पूरा करने के लिए हमेशा प्रयत्न करे.
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